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Maker Sankranti (मकर संक्रांति)

Maker sankranti

Maker sankranti

मकर संक्रांति परिचय (Introduction of Makar sankranti) :-

हर साल पौष महीने में जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है,तो मकर संक्रंति मनाई जाती है। हिंदु ग्रंथो के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव उत्तरायण होते है। मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं उसके बाद पुरे दिन पूजा, दान, और सुर्य देव का जाप करते है। मकर संक्रांति के दिन पुरोजो कि मोक्ष प्राप्ति के लिए बहती जलधारा में सरदांजलि अर्पित करते है, जिससे पुरोजो कि कृप्या दृष्टी हमेशा बनी रहती हैं|

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है ?- why is all indian celebrate makar sankranti-

एक बार की बात है कि कपिल मुन्नी पर इंद्रा देव का घोडा चोरी होने का आरोप लगा जिसके कारण क्रोधित हो कर कपिल मुन्नी ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रो को भस्म करने का श्राप दे दिया फिर उसके बाद राजा सगर द्वारा कपिल मिन्नी से माफ़ी मांगी उसके बाद कपिल मुन्नी ने उस श्राप से मुक्ति पाने का उपाय बताया उन्होंने सगर राजा को बोला की माँ गंगा को अपनी तपस्या से धरती पे लेकर आये, फिर आगे चल कर राजा सगर के पोते अंशुमन और राजा भागीरथ की कड़ी तपस्या के बाद माँ गंगा प्रसन्न होकर धरती पर परक हुई| उसके बाद राजा सागर के 60 हजार पुत्रो को मोक्ष की प्राप्ति हुई, इसी उल्लास में भारत और पुर विश्व में मकर संक्रांति का पर्व पुरे धूम धाम से मनाया जाता हैं|

मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी इसीलिए आज के दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है जिसके बारे में कहावत है कि “सारे तीरथ बार बार,गंगा सागर एक बार”।

 

मकर संक्रांति का इतिहास और वैज्ञानिक महत्व ( History of makar sankranti and scientific importance)-

हम सब जानते है की सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं लेकिन कर्क और मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। यह प्रवेश अर्थात संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। पृथ्वी की अक्ष 23.5 डिग्री झुकी होने के कारण सूर्य छः माह पृथ्वी  के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरीगोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है इसिलिय मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी कम होने लगती है। अतः मकर संक्रान्ति अन्धकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि की शुरुआत है।

सभी जीव-जंतु प्रकाश चाहते हैं प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है जबकि अंधकार अज्ञान का प्रतिक हैं|

भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है,इसलिए तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजा करते है सूर्यदेव के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

ध्यान देने योग्य है कि विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है, अतः मकर संक्रांति का पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है।

मकर संक्रांति की पौराणिक धरनाये (Spritual reason of makar sankranti)

धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके  घर जाते हैं। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं इसीलिय इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

गंगा पुत्र भीष्म पितामह का मकर संक्रांति से क्या संबंध हैं ?( Relation of ganga putr bhisham to makar sankranti)

देवताओं के दिन की गणना मकर संक्रांति के दिन से प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि और उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

भागवत गीता के अध्याय 8 में बाशुदेव कृष्ण कहते हैं कि उत्तरायण के छह महीने में देह त्याग करने वाले से ब्रह्म गति प्राप्त होती है जबकि दक्षिणायन के छह महीने में देह त्याग करने वाले से दुनिया में मृत्यु को प्राप्त किया जाता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद मकर संक्रांति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार कष्टों को सह कर बानो के सैया पर पड़े थे।

कहा जाता  है कि इस दिन यशोदा माता ने श्री कृष्ण भगवान को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था ।

मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू क्यों बनाए जाते हैं ?

मकर संक्रांति के दिन घरो में तील के लड्डू, तील और लाई से बना मिठाई बहुत ही उत्साह और ख़ुशी के साथ बनाकर परिवार के सभी सदस्य बहुत ही ख़ुशी के साथ उस मीठे पल का आनंद लेते है|

यही वजह है कि तिल और गुड़ का मिलन सूर्य और शनि के मिलन का प्रतीक माना जाता है. इसलिए परिवार में तिल-गुड़ के लड्डू को बनाना और इसे खाना बहुत ही शुभ माना जाता है. तिल गुड़ से बने लड्डू को भेंट करना सूर्य देव को प्रसन्न करना भी माना जाता है. इसे खाने से शरीर में शनि और सूर्य का संतुलन बना रहता है

मकर संक्रांति के दिन पतंग क्यों उड़ाई जाती है ?

मकर संक्रांति के दिन पूरे देश में पतंग उड़ाई जाती है,इसलिए इस दिन को पतंग पर्व भी कहा जाता है| मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है| पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान श्रीराम ने शुरु की थी| मकर संक्रांति के दिन भगवान श्री राम ने जो पतंग उड़ाई थी वो इंद्रलोक तक पहुंच गई थी| यही वजह है कि इस दिन पतंग उड़ाई जाती है|

पतंग उड़ाने का संदेश

पतंग को खुशी, आजादी और शुभता का संकेत माना जाता हैं क्योकि मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाकर एक-दूसरे को खुशी का संदेश दिया जाता है| मकर संक्रांति के दिन सूर्य की किरणें शरीर के लिए अमृत समान मानी जाती हैं जिसके कारण विभिन्न तरह के रोग दूर होते हैं| मकर संक्रांति के समय सर्दी का दिन होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और त्वचा तथा हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। कहा जाता हैं कि मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने से आप सूर्य की किरणों को अधिक मात्रा में ग्रहण करते हैं और शरीर में ऊर्जा आती है साथ ही विटामिन डी की कमी पूरी होती है|

हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते है फिर तिल,गुड़,चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस शुभ औसर पर लोग मूंगफली,तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खाते हुए  खुशियां मनाते हैं। घर की बहुएं और बेटिया घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।

राजस्थान और गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की परम्परा है। अहमदाबाद में गुजरात पर्यटन विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पतंगोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं,साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘ दान का पर्व ’ है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती नदी के किनारे प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसकी शुरुआत मकर संक्रान्ति से होती है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

गोरखपुर में मकर संक्रांति

गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मकर संक्रांति के महापर्व पर लाखों श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी (चावल-दाल,उड़द)चढ़ाकर अपनी आस्था व श्रद्धा निवेदित करते हैं। खिचड़ी चढ़ाने से पहले मंदिर में तड़के तील से चार बजे तक श्रीनाथ जी की विशिष्ट पूजा-आरती होती है। इसके बाद महाप्रसाद से गुरु गोरखनाथ का भोग लगता है। इसके बाद भारत राष्ट्र की सुख समृद्धि की कामना के साथ मंदिर की ओर से शिवावतार बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसके बाद पहली खिचड़ी नेपाल राज परिवार की ओर से श्रीनाथ जी को अर्पित की जाती है। सुबह के चार बजते ही मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं।

बिहार और बंगाल में मकर संक्रांति

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। बंगाल में इस पर्व पर गंगा सागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।

असम में मकर संक्रांति

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। उत्सव का पहला दिन उरुका कहलाता है। रात्रि में सामूहिक भोज होता है जिसमें नए अन्न का प्रयोग करते हैं और तिलपीठा बनाते हैं। मुर्गे और भैंसो के युद्ध आयोजित किये जाते हैं। लोक गीतों व् लोक नृत्यों की धूम होती है।

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं – “लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात् तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं। तिल चावल और चीनी को आग से पका कर चाशनी से आभूषण बनाकर बच्चों को भी बांटे जाते हैं।

आंध्रप्रदेश में मकर संक्रांति

आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में इस दिन चावल के आटे से आंगन में मग्गू की रचना करते हैं और उसके पास बैठ कर कन्याएं गीत गाती हैं। अगले दिन मौहल्ले में अलाव जला कर लोग एकत्र होते है और लोक गीत और नृत्य से मनोरंजन करते हैं।

तमिलनाडु में मकर संक्रांति

तमिलनाडु में इस त्योहार को एक ऋतु उत्सव पोंगल के रूप में मुख्यतः चार दिनों तक मनाते हैं।

पहले दिन भोगी-पोंगल – पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है

दुसरे दिन सूर्य-पोंगल – दूसरे दिन सूर्य की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में नई फसल के चावल व गन्ने के रस की पोंगल (खीर) बनाई जाती है। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।

इस दिन पशुओं को सजाते हैं और तमिलनाडु का प्रसिद्ध खेल जल्लिकट्टु होता है। इस खेल में बैल के सींग पर ईनाम की राशी बांधी जाती है और जो साहसी युवक आक्रामक बैल को साधता है उसे वह राशि दी जाती है।

तीसरे दिन मट्टू-पोंगल और केनू-पोंगल – तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है।

चौथे दिन कन्या-पोंगल – चौथे दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

कर्नाटक में मकर संक्रांति

इस दिन तिरुपति बाला जी की यात्रा का समापन होता है। केरल में इस दिन सबरीमाला मंदिर और त्रिचूर के कोडुगलूर देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ एकत्र होती है।

भारत के पडोसी देश नेपाल में मकर संक्रान्ति

 

इस पर्व को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्योहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्म करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूम-धाम से मकर संक्रांति मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिए जाते हैं। तीर्थस्थलों में देवघाट और त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

 

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